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कल रायपुर में cm विष्णु देव साय खालसा स्कूल में वीर बाल दिवस के कार्यक्रम में भाग लेंगे

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कल रायपुर में cm विष्णु देव साय खालसा स्कूल (माता सुंदरी पब्लिक स्कूल) में वीर बाल दिवस के कार्यक्रम में भाग लेंगे इस अवसर पर डिप्टी cm अरुण साव , विजय बघेल , के साथ बृजमोहन अग्रवाल , पुरंदर मिश्रा , मोती लाल साहू , राजेश मूणत और विधायक गण भी रहेंगे. उक्त कार्यक्रम स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा किया जा रहा है .
क्यों मनाया जाता है वीर बाल दिवस
श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के प्रकाश पर्व के दिन प्रधानमंत्री ने यह घोषणा की थी कि 26 दिसंबर को श्री गुरु गोबिंद सिंह के पुत्रों- साहिबजादे बाबा जोरावर सिंह जी और बाबा फतेह सिंह जी की शहादत की स्‍मृति में ‘वीर बाल दिवस’ के रूप में मनाया जाएगा।

साहिबजादा जोरावर सिंह और फतेह सिंह के बारे में
साहिबजादे जोरावर सिंह (9) और फतेह सिंह (7) सिख धर्म के सबसे सम्मानित शहीदों में से हैं।
सम्राट औरंगज़ेब (1704) के आदेश पर मुगल सैनिकों द्वारा आनंदपुर साहिब को घेर लिया गया।
इस घटना में गुरु गोबिंद सिंह के दो पुत्रों को पकड़ लिया गया।
मुसलमान बनने पर उन्हें न मारने की पेशकश की गई थी।
इस पेशकश को उन दोनों ने ठुकरा दिया जिस कारण उन्हें मौत की सज़ा दी गई और उन्हें जिंदा ईंटों की दीवार में चुनवा दिया गया।
इन दोनों शहीदों ने धर्म के महान सिद्धांतों से विचलित होने के बजाय मृत्यु को प्राथमिकता दी।

गुरु गोबिंद सिंह:
परिचय:

दस सिख गुरुओं में से अंतिम गुरु गोबिंद सिंह का जन्म 22 दिसंबर,1666 को पटना, बिहार में हुआ था।
उनकी जयंती नानकशाही कैलेंडर पर आधारित है।
गुरु गोबिंद सिंह अपने पिता ‘गुरु तेग बहादुर’ यानी नौवें सिख गुरु की मृत्यु के बाद 9 वर्ष की आयु में 10वें सिख गुरु बने।
वर्ष 1708 में वो दिव्य जोत में लीन हो गए ।
योगदान:
धार्मिक:

उन्हें सिख धर्म में उनके महत्त्वपूर्ण योगदान के लिये जाना जाता है, जिसमें बालों को ढँकने के लिये पगड़ी भी शामिल है।
उन्होंने खालसा या पाँच ‘क’ के सिद्धांत की भी स्थापना की।
पाँच ‘क’ केश (बिना कटे बाल), कंघा (लकड़ी की कंघी), कड़ा (लोहे या स्टील का ब्रेसलेट), कृपाण (डैगर) और कचेरा (छोटी जाँघिया) हैं।
ये आस्था के पाँच प्रतीक हैं जिन्हें एक खालसा को हमेशा धारण करना चाहिये।
उन्होंने खालसा योद्धाओं के पालन करने हेतु कई अन्य नियम भी निर्धारित किये, जैसे- तंबाकू, शराब, हलाल मांस से परहेज आदि। खालसा योद्धा निर्दोष लोगों को उत्पीड़न से बचाने के लिये भी कर्तव्यनिष्ठ थे।
उन्होंने अपने बाद गुरु ग्रंथ साहिब (खालसा और सिखों की धार्मिक पुस्तक) को दोनों समुदायों का अगला गुरु घोषित किया।
सैन्य:
उन्होंने वर्ष 1705 में मुक्तसर की लड़ाई में मुगलों के खिलाफ युद्ध किया।
आनंदपुर (1704) के युद्ध में गुरु गोबिंद सिंह ने अपनी माँ और दो नाबालिग बेटों को खो दिया, जिन्हें मार डाला गया था। उनका बड़ा बेटा भी युद्ध में मारा गया।
साहित्यिक:
उनके साहित्यिक योगदानों में जाप साहिब, बेंती चौपाई, अमृत सवाई आदि शामिल हैं।
उन्होंने ‘ज़फरनामा’ भी लिखा जो मुगल सम्राट औरंगज़ेब को एक पत्र था।