मध्यप्रदेश की जेलें हाउसफुल हो चुकी हैं. हर जेल में क्षमता से ज़्यादा क़ैदी ठूंस-ठूंस कर रखे गए हैं. जेलों में क्षमता से 47 फीसदी ज्यादा क़ैदी बंद हैं. इसलिए सुरक्षा के लिहाज से प्रदेश की जेल ख़तरे की घंटी बजा रहे हैं.
भोपाल सेंट्रल जेल ब्रेक हुए अभी ज़्यादा वक्त नहीं बीता है. राजधानी की जेल की सुरक्षा व्यवस्था की धज्जियां उड़ाते हुए सिमी के 8 क़ैदी यहां से भाग निकले थे. हाल ही में नीमच जेल ब्रेक हुई.
ताज़ा हालात
मध्य प्रदेश में कुल 11 सेंट्रल जेल हैं. इनके अलावा 41 जिला जेल, 73 सब जेल और 5 खुली जेल हैं.इनमें क़ैदियों की तादाद साल दर साल बढ़ती जा रही है. 2016 में यहां 36 फीसदी, 2017 में 37 और 2018 में 47 फीसदी क़ैदी ज़्यादा हैं.
जेल विभाग की ताजा रिपोर्ट के अनुसार 2018 में प्रदेश की जेलों में कुल 42,057 कैदी बंद थे, जबकि क्षमता सिर्फ 28,601 कैदियों की है.सेंट्रल जेलों में सभी तरह के बंदियों के रखे जाने का सीधा असर सुरक्षा पर पड़ता है. क्षमता से ज्यादा बंदी के अनुपात में जेलों में प्रहरियों की संख्या कम है.लापरवाही का नतीजा है कि पिछले चार साल में 300 से ज्यादा कैदी जेल से फरार चुके हैं. बड़े मामलों में सबसे पहले सिमी कैदी खंडवा से फरार हुए और बाद में फिर भोपाल जेल ब्रेक हुई. जेल ब्रेक का एक बड़ा कारण क्षमता से अधिक कैदी भी माना जाता है.
जेलों में सुरक्षा के लिए ज़्यादा इंतज़ाम के लिए बड़े बजट की ज़रूरत है. जेल मुख्यालय ने इसके लिए बजट सरकार के पास भेजा है लेकिन सरकार ने अभी तक इस पर ध्यान नहीं दिया है. विभाग ने 2018-2019 के लिए 36129.26 लाख रुपए का बजट भेजा था लेकिन मिले सिर्फ 34006.85 लाख रुपए.
सुरक्षा पहरा
प्रदेश की जेलों में 6 हजार सिक्युरिटी फोर्स तैनात है. जबकि ज़रूरत इससे कहीं ज़्यादा स्टाफ की है.जेल मुख्यालय ने फोर्स बढ़ाने का प्रस्ताव भी सरकार को भेजा है.