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4000 एकड़ में प्राकृतिक खेती पर होगी स्‍टडी, अच्‍छी उपज के बाद किसानों को सिखाए जाएंगे तरीके

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देश का कृषि क्षेत्र अब प्राकृतिक खेती (Natural Farming) की तरफ अपना ध्‍यान बढ़ा रहा है और राज्‍य सरकारें भी अब इस दिशा में काम करने में जुट गई हैं. देश में अपनी तरह की पहली पहल में कर्नाटक सरकार (Karnataka Govt) यह कदम उठाने जा रही है, जिसमें वह प्राकृतिक खेती पर ध्यान केंद्रित करेगी और चार कृषि विश्वविद्यालयों (Agriculture Universities) से जुड़े कृषि विज्ञान केंद्रों में 1,000 एकड़ के साथ 4,000 एकड़ में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का उपयोग किए बिना फसल उगाएगी. यह फैसला इसलिए लिया गया है, क्योंकि केमिकल मुक्त सब्जियों और फलों की मांग बढ़ रही है. दरअसल, प्राकृतिक खेती किसानों के लिए किफायती है, क्योंकि उन्हें रासायनिक उत्पादों पर पैसा खर्च नहीं करना पड़ता है.

रिपोर्ट के अनुसार, इस प्री-मॉनसून (Pre-Monsoon) की शुरुआत में सरकार चार कृषि विश्वविद्यालयों के साथ मिलकर रसायन मुक्त खेती पर अध्ययन करेगी, जोक‍ि बेंगलुरु, धारवाड़, रायचूर और शिवमोग्गा में स्थित हैं. उपज अच्छी होने के बाद किसानों को प्राकृतिक खेती के तरीके सिखाए जाएंगे.

कृषि मंत्री बीसी पाटिल ने बताया कि इन विश्वविद्यालयों के पास बड़ी जमीन है और प्रत्येक परिसर में 1,000 एकड़ में प्राकृतिक खेती की जाएगी. उन्होंने कहा कि क्षेत्र आधारित फसलों पर ध्यान दिया जाएगा.

पाटिल ने कहा कि राज्य में किसान धान, रागी, दालें, ज्वार, सुपारी, फल और सब्जियों सहित विभिन्न फसलें उगाते हैं. प्रत्येक क्षेत्र जलवायु और पानी की उपलब्धता के आधार पर विभिन्न फसलें उगाता है. रासायनिक आधारित उर्वरकों और कीटनाशकों के बजाय वैज्ञानिक फसल उगाने के लिए हरी पत्तियों, नीम, गाय के गोबर और अन्य प्राकृतिक रूप से उपलब्ध वस्तुओं का उपयोग करेंगे. इस अप्रैल और मई से जोकि प्री-मानसून सीजन है, हम इन पर खेती शुरू करेंगे. एक बार यह सफल हो जाने के बाद हम उन क्षेत्रों के किसानों से प्राकृतिक खेती करने के लिए कहेंगे.

कर्नाटक राज्य प्राकृतिक आपदा निगरानी केंद्र (केएसएनडीएमसी) के पूर्व निदेशक और वैज्ञानिक अधिकारी श्रीनिवास रेड्डी ने कहा, “रासायनिक आधारित खेती के साथ, स्वस्थ मिट्टी को बनाए रखने में मदद करने वाले कीड़े सहित वनस्पतियों और जीवों को मार दिया गया है. प्राकृतिक खेती मिट्टी की उर्वरता को वापस ला सकती है और उत्पादन बढ़ सकता है. कार्बन सामग्री में भारी कमी आई है.